पंचपरगनिया भाषा का विकास| Panchpargania Bhasha Ka Vikash

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पंचपरगनिया भाषा का विकास :- पंचपरगनिया भाषा का विकास किस तरह से हुआ है, उसका अध्ययन पंचपरगनिया भाषा के विकास के बिंदु में किया जा रहा है। निश्चित रूप से किसी भाषा का शुरूआत, बोली के रूप में समाज में स्थापित होता है। प्रायः बोली रूप तब तक कहा जाता है जब तक कि उसकी लिखित रूप यानी साहित्यिक रूप नहीं आता है फिर व्याकरणिक रूप।

पंचपरगनिया भाषा का विकास में अपभ्रंश के साथ संबंध

पंचपरगनिया भाषा का विकास:- पंचपरगनिया भासा मेहेंने पाँच परगना छेतर’ केर जातिगत भासा आर बाहिर ले आल भासा केर बिसेस लसिंद देखाएला किंतु बाहिर ले आल भासाक बेसि लसिंद देखाएला। इ रकम पंचपरगनिया भारोपीय/भारत-युरोपिय केर भारतीय-ईरानी खेजा केर भार’तिअ आरज’ उपसाखा केर एकटा भासा हेके। इ रकम भाभे भार’तिअ आरज’ भासा मेंहेन इकर स’झा संबंध देखाएला। आर ज’तनाइ आरज’ भासा आहे जेगिला आपन निजेक चिन्हाप बनाए चुइक आहे उग्लाक सझा संबंध अपभरंस मेहेंन आहबे करे।

अपभ्रंश के संबंध में मेंहेन डाॅ. भोलानाथ तिवारी जी का कथन

पंचपरगनिया भाषा का विकास:- अपभरंस केर संबंध मेंहेन डाॅ. भोलानाथ तिवारी जी का कइ आहएँ देखा- ‘‘द्वितीय प्राकृत काल की जन भाषाओं पर तत्कालीन साहित्यिक प्राकृत आधारित थी किंतु साहित्य में आ जाने के कारण उनका जन स्तर पर विकास नहीं हुआ। जन स्तर पर जन भाषा ही विकसित होती रही। प्रकृत कालीन जनभाषा का यही विकसित रूप मोटे तोर में 500 ई. से 1000 ई. के बीच अपभ्ंा्रश कहा जाता है।”

पंचपरगनिया भाषा का विकास

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डाॅ. भोलानाथ तिवारी जी के कथन का बिवेचन

पंचपरगनिया भाषा का विकास:- इआनि कि डाॅ. भोलानाथ तिवारी जी केर कथन अनुजाइ कहल जाए पाराए कि पंचपरगनिया भासा केर नींउ 500 इस्बि ले 1000 इस्बि केर मांझे हए जाए र’हे। किंतु हिंआ सउआल उठ’तेहे कि एकर ले पहिल हिंआ कन भासाक बेब’हार करत र’हेन? संभवतः एकर ले पहिल’ हिंआ एकटा एसन भासा रहे जेटा ले भिनु-भिनु जाति समुदाए केर ल’ग एक दसर संग समपरक’ चाहे हाट-बाजारे बात-चित करेक तेहें बेब’हार करत रहेन।

काहेकि उ समइए परतेक जाति समुदाए केर निजेक संसकिरिति, निजेक चिन्हाप, निजेक भासा रहे। इ भाभे अपभरंस केर पहिल’ हिंआ एकटा जातिगत भासा ले दसर (इतर) एकटा भासा रहे जेटा कालानतर मेंहेन अपभरंस, अवहट्ट संग अपभरंसित हते गेलक आर आघु बाढ़ते गेलक जेटा कालानतर मेंहेन अनेक बाहिर ले आल भासा संग ज’ड़ाते गेलक आर अनेक नाम मेंहेन ह’ते-ह’ते एखन पंचपरगनिया नामे डांड़ालक।

पंचपरगनिया भाषा के विकास में अपभ्रंश के साथ संबंध:- प्रो॰ परमानंद महतो जी का मत

पंचपरगनिया भाषा का विकास:- अपभरंस केर संबंध मेंहेन प्रो॰ परमानंद महतो जी केर बिचार देखा-“पूर्वी अथवा मागधी अपभ्रंश अशुद्ध अपभ्रंश थी। व्याकरणिक जटिलता इसमें क्रमशः कम हो गई और लोकप्रिय भाषा बनी। इसी मागधी अपभ्रंश से मगही, मैथिली, भोजपुरी, बंगला, असमिया, उडि़या, गुजराती तथा मराठी आर्य भाषाओं का विकास हुआ। इसमें से मगही, मैथली तथा भाजपुरी को डाॅ॰ ग्रियर्सन ने ‘बिहारी’ नाम दिया।

मागधी अपभ्रंश से प्रसूत बिहारी परिवार की अन्य भाषाओं की तरह पंचपरगनिया भी मागधी अपभ्रंश से विकसित एक भाषा है जो अब तक मगही, भोजपुरी और नागपुरी की विभाषा मानी जाती रही।” साथ ही आगे लिखे हैं कि “पंचपरगनिया को नागपुरी की विभाषा न मानकर बिहारी की पाँचवी भाषा मानना ही न्यायसंगत होगा।”

पंचपरगनिया भाषा का विकास, के संबंध में विश्लेषण

पंचपरगनिया भाषा का विकास:- एखन जतनाइ आरज’ भासा आहे जेगिला आपन निजेक चिन्हाप बनाए चुइक आहे इग्लाक निजेक चिन्हाप (छाप) 14 वीं सताब्दी केर सुरू मेंहनेइ उकर साहित मेंहेन देखे पाउआएला। किंतु पंचपरगनिया केर उ समइ केर कन’ लिखित साहित नी पाउआएला अहे तेंहे पुस्ट’ भाभे कहना टा मुस्किल हेके कि पंचपरगनिया भासा टा कबे एखनुक रूप टाके धारन करलक। किंतु अनुमान केर आधारे कहल जाए पाराए कि आर’ अइन’ भासा जेसन-मगही, भोजपुरी, मैथली, बंगला, उडि़या, असमिया आर मराठी संगे-संगे पंचपरगनिया भासा केर’ बिकास हए आहे।

आर जेसे-जेसे इ भासा टा आघु बाढ़ते गेलक इटाएं बाहिर ले आगत आरज’ आर बाहिर ले आल जातिगत भासा आर इ छेतर’ (पांचपरगना) मेंहेन रह’इया भिनु-भिनु जाति समुदाय केर जातिअ भासा केर बिसेस लसिंद ह’ते गेलक। एहे समइए 1522 ई॰ मेंहेन पुरी लेक मथुरा जात के चइतन’ महापरभु बुण्डू आए रहेन। हिंआ केर बादे महापरभु झारखंड केर अनेक छेतर’ मेंहेन बइसनब धरम केर परचार परसार करलएँ।

बइसनब गिला केर गउडि़अ समपरदाए टाकेर आधार सिला इम’ने राइख रहेन। एखन पांचपरगना समेत झारखंड ले सटल बंगाल केर छेतर’ गिलाएँ बनल राधा-किसन’ मंदिर, किरतन गिला केर नाउआ सइलि, पांचपरगना मेंहेन किरतन इमने केरे देन हेके। से समइए इमन आपन कबिता गिला मेंहेन इ समपुरन’ छेतर’ टाके झाड़ीखंड नाम दे रहेन। से समइए इ इलाका बन जंगल ले भरल पुरल रहे।

इमन ज’न डहर मेंहेन चलतएँ न’दि, झिल, पाहाड़, टांगरा-टुंगरि, गांउ एमाइन जेटा के भेंटातंए सउब इमनकेर लसिंद मेंहेन रंगाए जात रहे। इमन उ समइ मेंहेन किसन’ भक्ति केर परचार-परसार बंागला भासाएँ करत रहेन अहे तेहें पंचपरगनिया भासा मेंहेन बांगला केर लंसिद बेसी भागे देखे पाउआएला। आर इमनेक संग परभाबित हए कहन से समइए अनेक इ छेतर’ केर कबि गिला गित, काइब एमाइन गिलाक रचना करे लागलंए, जेगिला एखन’ बांगला भासाएँ देखे पाउआएला। इ रकम पंचपरगनियाए बांगलाक लसिंदेक इग्ला बड़े कारन हेके।

सारांश

पंचपरगनिया भाषा का विकास:- इ रकम जेसे-जेसे इ भासा टा बाढ़ते गेलक इटाएँ हिंआक जातिगत भासा सहित बाहिर ले आल आगत भासा केर सब्द’ ज’ड़ाते गेलक आर पंचपरगनिया भासा टा एखनुक रूप धारन कइर लेलक। एखन’ पंचपरगनिया भासा टा मेंहेन भिनु-भिनु भासा केर नाउआ-नाउआ सब्द’ आर जेसे-जेसे समाज बिकास कर’तेहे इटाएं एखनुक तकनीकी जुग केर नाउआ-नाउआ तकनिकि सब्द’ ज’ड़ाते जातेहे आर इ भासा टा आर’ समरिध आर खिचड़ी रकम स्आद ह’ते जातेहे।


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