Panchpargania Bhasha Ka Janm| पंचपरगनिया भासा का जन्म / उद्भउ

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Panchpargania Bhasha Ka Janm :- पंचपरगनिया भासा केर जनम/उद्भउ :- भासा आर समाज केर बीचे अटुट संबंध पाउआल जाएला। एहे कार’नेइ कन’ भी भासा केर संबंध कन’ न’ कन’ समाज ले अब’इस’ रहबे करेला। बिसेस कइर कहन पंचपरगनिया रकमेक भासा केर तेहें इटा आर’ बेसी गाढ़ हए जाएला जेटा अनेक जातिगत भासाक मिलल रूप हेके/खिचड़ी रूप हेके। भासा केर बारे उद्भउ केर मतलब कन’ भासा केर उत्पति यानी उद्भउ केसे, का रकम हलक, इटाक जिकिर करल जाएला। इआनी कि कन’ भी भासा केर जनम काहाँ, केसे, कन कारन ले हए आहे, इटाक अइधन भासा केर उद्भउ मेंहेन करल जाएला। फेइर उ भासा टाकेर बिकास का रकम हलक इटाक अइधन भासा केर बिकास केर बिन्दु मेंहेन करल जाएला।

पंचपरगनिया भासा / Panchpargania Bhasha का जन्म

कन’इ भी भासा केर सुरूआत ब’ली केर रूप मेंहेन समाज मेंहेन हएला। आर ब’ली रूप तखन तक कहल जाएला जखन तक कि उ भासा टाकेर लिखित रूप इआनी साहितिक रूप नी आए जाएला। आर फेइर बेआकरनिक रूप। ज’खन एकर साहितिक रूप आर बेआकरन आए जाएला तखन उ धीरे-धीरे आघु बाढ़ेला आर बिकासेक डह’रे अगर’सर हए जाएला। हामरेक भासा पंचपरगनिया केर उद्भउ आर बिकास केर बारे जानकारी देएक पहिल इटा कहे चाह’ति कि ‘‘पंचपरगनिया’’ जेसन कि नाम लेइ पाता चलेला कि इटा पंच चाहे पांच ले बेसी भासाक मिसरन हेके।

Panchpargania Bhasha Ka Janm

इ भाभे पंचपरगनिया भासाक संबंध पांचपरगना आर इकर बिसतिरित छेतर’ मेहेंन बस’ बास कर’इया भिनु-भिनु जाति गिलाक आपन जातिगत भासा ले हए पारे। इटाक चरचा पंचपरगनिया भासाक नामकरन संबंधी खेजा मेंहेन चरचा पहिले कइर आही। काहेकि झारखंड राइज मेंहेन ज’तराइ जाइत आहंए लगभग सउब जाइत केर आपन जातिगत भासा रहे आर इमनेक आपन भरल पुरल ल’क साहित आर भिनु रकमेक ल’क संसकिरितिअ रहे। इ रकम भाभे पंचपरगनिया भासाक जनम आर बिकास केर सीधा संबंध पांचपरगना छेतर’ मेंहेन बस’बास कर’इआ भिनु-भिनु जाति समुदाए ले हए पारे।


‘पंचपरगनिया जेसन कि नाम टा लेइ पाता चल’ते कि इ भासा टा ढेइर भासा केर मिलल रूप, खिचड़ी रूप हेके। अहे तेहें ढेइर बिदुआन गिला पंचपरगनिया भासा के आपन भासाएं मिलाएक असफल क’सिस कइर आहएँ। पंचपरगनिया भासा केर उद्भउ आर बिकास केर लेकहन भिनु-भिनु बिदुआन गिलाक आपन-आपन मत आहे। झारखंड केर आरज’ भासा परिबार केर बिदुआन गिला इके आपन भासाएं मेसाए ख’इज आहेन हुंआइ बिहारी भासा जेसन मगही, भोजपुरी केर बिदुआन गिलाउ पंचपरगनिया के आपन भासाएं ज’ड़ेक क’सिस कइर आहेन।

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इटा स’भाबिक काथा हेके, काहेकि पंचपरगनिया भासाटाक इटा बिसेसता हेके कि जे भासा केरे लछन ख’जबा सेटाकेरे लछन पाउआइ। काहेकि पंचपरगनिया पंचरंगी इआनी अनेक जातिगत आर बाहिर ले आल भासाक मिलल रूप इआनी खिचड़ी रूप हेके। आर खिचड़ी रकम सआद’ आहे। हं, किन्तु कन’ एकटा आरज’ भासा चाहे कन’ एकटा जाइत केर जातिगत भासा हेके कहले इटा अनुचित हइ। जेसन केउ एके नागपुरी केर बिभासा त’ केउ एके मगही, भोजपुरी केर रूप भेद त’ केउ एके अहीर जाति ले परभाबित अहीर भासा ले बाहराल भासा मानंएला। इगला अनुचित बुझाएला। पंचपरगनिया भासाक संबंधे कन बिदुआन का-का कइ आहएँ के-के आपन भासाएं मिलाए ख’इज आहंए के कन’ बिसेस जाइत संग ज’ड़ेक कोसिस क’इर आहंए इगला जाइन लेना जरूरी हेके, त’ चला एक-एक कइर कहन बिदवान गिलाक बिचार के जाइन लेतिहि।

डॉ. जाॅर्ज ग्रियर्सन का परिचय

पहिला बिदुआन हेकएँ जाॅर्ज ग्रियर्सन महोदय इमन नामकरा भासा बइगानिक आर इतिहारसकार केर रूपे जग जाहिर आहएँ। इमन सउबले पहिल बिहारी भासा गिलाक अइधन कइर रहएँ आर बिहारी भासा केर सात टा बेआकरन 1883-87 केर बीचे परकासित कइर आहेन। फेइर 33 साल तक अथक मेहनत कइर के भासा सरबेछन 11 जिल्द मेंहेन परकासित करलएँ। फेइर 1906 मेंहेन पिशाच भासा मेंहेन आर 1911 मेंहेन कस्मीरी भासा दुइ भागे परमानिक गंरथ बाहरालएँ। फेइर 1924 मेंहेन 4 भागे कस्मीरी क’स छापुआलएँ। इमन केर सउबले नामकरा काम ‘‘ लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया ’’ हेके जेटा 11 खंड मेंहेन आहे। जेटाक तेहें इमन के हमेसा इआइद राखल जाइ। इमन ‘‘ लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया ’’ मेंहेन पंचपरगनिया भासाक बारे का कइ आहएँ देखा –

पंचपरगनिया / Panchpargania के सम्बन्ध में डॉ. जाॅर्ज ग्रियर्सन का कथन

The estern Magahi spoken in the five Pargana is known as Panch Pargana As it is strongest in Pargana, tamar, it is also tamariya

ग्रियर्सन, जार्ज, ‘‘लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया’’, खंड – 5, भाग – 2, 1903, पृष्ठ – 166

इआनी कि पांच परगना मेंहेन कहाइआ ब’ली, पुरबी मगही केर रूप हेके। जेटा पंचपरगनिया केर नामे जानल जाएला। चूंकि तमाड़ परगना मेंहेन सउबले बेसि पर’चलित आहे, अहे तेहें इटाके तमडि़आउ कहल जाएला।

पंचपरगनिया के सम्बन्ध में डाॅ॰ उदय नारायण तिवारी जी का कथन

’एहे रकमे भोजपुरी भासा केर बिदुआन डाॅ॰ उदय नारायण तिवारी जी पंचपरगनियाक संबंधे का कइ आहएँ देखा ‘‘राँची जिले के पूर्वी क्षेत्र सिल्ली, बुण्डू, सोनाहातु, तमाड़ एवं राहे को पांचपरगना कहते हैं यहां की बोली पंचपरगनिया है जो भोजपुरी का एक रूप है।’’


डॉ. जाॅर्ज ग्रियर्सन तथा डाॅ॰ उदय नारायण तिवारी जी के कथन का विवेचन

डाॅ॰ ग्रियर्सन आर डाॅ॰ उदय नारायण जीक कथन गिला सइकार करेक रकम नी बुझातेहे काहेकि भासाक बनेक बगड़ेक मेंहेन भउग’लिक सीमा केर नामकरा इस्थान रहेला। मगही केर भासिक छेतर’ दखिन बिहार गया केर आधा भाग, पटना, जमुई, मुंगेर, औरंगाबाद केर इलाका आर बिदुआन केर अनुसार भोजपुरी केर भासिक छेतर’ भोजपुर शाहबाद जिला हेके। यानी कि मगही, भोजपुरी केर भासिक छेतर’ उतरी प्लेट’ हेके जेटा मटामटी समतल भू-भाग इआनि पेलेन जाएगा हेके। आर पंचपरगनिया, पांचपरगना छेतर’ जेटा कि दखिन पेलेट’ इआनि दखिन छ’टानागपुर केर भासा हेके जेटा बन-जंगल, घाटि आर उंचा-उंचा पाहाड़ ले घेराल आहे। आर बिदुआन केर मत हेके कि मानुस केर रकमे भासा कउ उंचा जाएगा पहंचेक मेंहेन दिक्कत हएला, कस्ट’ हएला।


इकर अलाउआ पंचपरगनिया भासीक छेतर’ चाहे दखिन छ’टानागपुर केर लग केर रहन-सहन, भेस-भुसा, गित, सुर, ताल, लय, पारमपरिक निरित, संसकिरिति, स्ंास्कार एमाइन मगही, भोजपुरी भासिक छेतर’ ले एकदमे आलेदा आहे। इ रकम ‘पंचपरगनिया’ मगही, भोजपुरी ले अलग एकटा आलेदा भासा हेके जेटाएं बांगला आर उडि़याक लसिंद बेसि देखे पाउआएला। एकर अलाउआ बिदुआन केर मत हेके कि ‘‘ ग्रियर्सन आर आर’ किछु बिदुआन गिलाक काम एजेंसि इआनि कि परतिनिधिक माइधमे हए आहे।

अहे तेहें इमनेक स’ध गरंथ मेंहेन भासा संबंधी बात बिना जाइन बुइझ कहने, बिना बिसलेसन कइर खने लिख देल गेलक आर परसतुत करल गेलक। किछु काथा त’ अबिसासेक संगे-संगे भारामक’ आहे। इ रकम हए पारे कि डाॅ॰ ग्रियर्सन आर डाॅ॰ उदयनारायण तिवारी जी केर परतिनिधि इआ त’ ख’ज कर’इआ गिलाके पंचपरगनिया मेंहेन मगही आर भोजपुरी केर कुछ-कुछ तत् मिल जाएक कार’नेइ पंचपरगनिया के मगही आर भोजपुरी केर रूप भेद कइ दे हबएं। इ नज’इरे पंचपरगनिया के मगही, भोजपुरी केर रूप कहना टा उचित ना लागे आर बिचार करेक’ चीज हेके। असाल मेंहेन पंचपरगनिया मगही आर भोजपुरी केर रूप ना हए कहन एकटा आलेदा (स्वतंत्र) भासा हेके। जेटा अनेक भासा केर मिलल रूप हेके।

नलिन मोहन सन्याल का कथन

छ’टानागपुर केर भासा गिलाके कुछ बिदुआन मागधी प्राकृत चाहे अपभ्रंश संग जड़’एँला। इटाक संबंधे नलिन मोहन सन्याल का कइ आहएँ देखा – ‘‘मागधी अपभ्रंश से उत्पन्न बोलियों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।

  1. पूर्वी मागधी जिससे बंगला, असामी और ओडि़या बनी है।
  2. केन्द्रीय मागधी जिससे मगही और मैथिली भाषाएं बनी है तथा
  3. पश्चिमी मागधी, जिससे भोजपुरी और छोटानागपुर की बोलियां बनी है।’’

इ रकम सन्याल मह’दए कर अनुजाइ छ’टानागपुर केर ब’लि जेगिला के एखन भासाक दरजा मिल चुइक आहे- पंचपरगनिया, नागपुरी, खोरठा एमाइन गिला भोजपुरीक संगे पछिमि मागधिक भितरे आहे।

नलिन मोहन सन्याल के कथन का विवेचन

इ रकम पंचपरगनिया, बंगला, असमिया आर उडि़आक रकमे मागधि अपभरंस ले आंसिक रूपे बाहराल एकटा भासा हए पारे किंतु इटाएं बिरहत पांच परगना छेतर’ मेंहेन बस’-बास कर’इआ भिनु-भिनु जाति समुदाए केर जातिअ भासा केर बिसेस लसिंद देखाएला। इआनि कि आरज’क आएक पहिले हिंदे अनेक रकम केर कबिलाबाची जाइत बस’-बास करत रहएँ जेगिलाक आपन जातिगत भासा आर आपन बिसिस्ट ल’क संसकिरितिअ रहे। इमन जखन एक कबिलाक ल’ग दसर कबिलाक ल’ग संग संपरक’ इस्थापित करत रहएँ तखन उमन आपन भासा ले अलग एकटा टुटल-फुटल ब’लिक बेब’हार करत रहएँ।

जेटा इ संपुरन’ छेतर’ मेंहेन रह’इआ जातिगत भासाक टुटल फुटल जहड़ल रूप रहे। इकर बादे जेसे-जेसे इ छेतर’ मेंहेन आर’ अइन’ ल’ग केर आगमन ह’ते गेलक इ टुटल फुटल ज’ड़ल अनेक जातिगत ब’लि मेंहेन उमनेक भासाक नाउआ-नाउआ सब्द’ ज’ड़ाते गेलक आर धिरे-धिरे बिकसित हते गेलक। एहे ब’लि टाइ आघु चइलकहन आरज’ भासा संग मेसलक आर आरज’ भासाक संग लसिंद पाएकहन अपभ्रंश इआनि टुटते- जुड़ते आघु बाढ़ते गेलक जेटा अनेक रकम केर नाम मेंहेन ह’ते-ह’ते बरत’मान मेंहेन पंचपरगनिया मेंहेन अधिष्ठित हए जाए आहे।

इ रकम भाभे हामरे कहे पारि की आरज’ केर आएक पहिले इ छेतर’ मेंहेन एकटा संपरक’ ब’लि रहे जेटा जातिगत भासा ले इतर (अलग) कन’ दसरा रहे जेटा आघु बाढ़ते-बाढ़ते एखन पंचपरगनिया क’हातेहे। इ रकम एकर उतपति यानी जनम केर संबंध मागधी अपभ्रंश चाहे प्राकृत संग पुरा पुरी ज’ड़ना टा उचित ना लागे। हं आंसिक रूपे हए पारे।

इ रकम भाभे पहिलुक जमानांए इ छेतर’ मेंहेन जेटा गएर जातिगत भासा र’हे उटाएं कालान्तर मेंहेन जखन आरज’ सउब इ छेतर’ मेंहेन आलंए तखन उमनेक भासा जड़ाते गेलक, मिलते गेलक, अहे तेहें आरज’ भासा केर बरगेक संग इ भासा टाक समानता देखे पाउआएला। किंतु हिंआक अनेक रकमेक जातिगत भासाक सब्दाउलि आर इ भासा गिलाक बिसिस्ट लछन गिलाउ देखे पावााएला। अहे तेहें कहल जाए पाराए कि पंचपरगनिया भासा मेंहेन आरज’ भासाक अनेक रकमेक समानता रहतकउ इकर आपन आलेदा बिसेस बिसेसता आहे जेगिला आरज’भासा, बिहारी भासा एमाइन ले आलेदा राखेला।

किंतु पंचपरगनिया भासाक जनम कबे हलक आसट’ रूपे कहे पारना टा मुसकिल हेके। हं एतना कहे पारि कि एकर बिकास आर एखनुक सरूप टाके धारन करेक मेंहेन पांच परगना छेतर’ केर भिनु-भिनु जाति समुदाए केर जातिए भासा केर नामकरा जगदान रइ आहे। एकर अलावा पांच परगना छेतर’ केर कला संसकिरिति, धउनिगत बिसेसता, बेआकरनिक बिसेसता, भासिक संरचना, इ छेतरक सुर-ताल, गित केर लए, हिंआक रीति-रिबाज, आर संसकार, हिंआक ल’क साहित, ल’क’कति, मुहाबरा एमाइन मगही, भोजपुरी भासिक छेतर’ ले भिनु आहे। इ रकम इगला सउब मगही, भोजपुरी ले अलग हएक कारन हेके।

पंचपरगनिया / Panchpargania के सम्बन्ध में डाॅ.करम चंद्र अहीर जी का कथन

डाॅ॰ करम चंद्र अहीर गुरूजी उमन पंचपरगनिया भासा के अहीर जाइत संग ज’ड़’एँला आर अहिरि/ आभिरि भासा ले निसरित भासा मानएँला। इमनेक बिचार का कइ आहेन देइख लेउआ-

पाँचपरगना के अहीरों के पूर्वज जब यहाँ आये तब वे लोग अपने साथ आभीरी संस्कृति, आभीरी भाषा, आभीरी साहित्य, और आभीरी कला के तत्त्व ले के आये और यहाँ उस समय समाजिक और आर्थिक स्थिती ठीक नहीं थी जिसके कारण छोटे-छोटे लकड़ी और ‘खैर’ (एक प्रकार का घास) घास के द्वारा बनाये घर में रहने लगे अर्थात अन्य जाति से गरीब थे। शायद इसी वजह से उनकी भाषा को ‘खेरवारी’ नाम से जाना जाने लगा जो कि अधिक मधुर और सबके लिए सहज होने के कारण कला प्रिय तमाड़ राजा और तमाड़ राजा के अधीनस्थ मानकी, मुण्डा, जमींदार एवं सभी दरबारी लोगों का घरेलु भाषा बन गया। इस प्रकार इस भाषा का एक नाम ‘तमडि़या’ पड़ा।”

हिंआ डाॅ॰ करम चंद अहीर गुरूजी केर कहल काथा टाएं संदेह ह’तेहे काहेकि अहिर जाइत केर आएक पहिल’ त’ हिंआ अनेक रकम केर जाइत बस’बास करत रहेन आर इमनेक आपन जातिगत भासा आर आपन बिसिस्ट संसकिरितिअ रहे। त’ फेइर बाहेइर ले आल अहीर जाति केर भासा संस्किरिति के केसे हिंआक ल’ग एका-एक आपनालेन? इटा संचेक ज’इग’ बात हेके।

इटाक संबंधे डाॅ॰ अहीर जि केर कहना हेके कि अहिर जाइत केर भासा टा मधुर आर सउबकेर तेहें आसान रहे अहे तेहें कला पिरिअ’ तमाड़ राजा आर अकर अधिनस्थ मानकी, मुण्डा, जमींदार आर सउब दरबारी लग एके घ’रेक भासा बनालंए। इटा अहिर जि केर कथन हेके किंतु सिदांतिक बात इटा हेके कि काहुं बाहिर ले आल कनइ भी भासा संस्किरिति के काहुं केर इसथानिए बासि/मुल बासि एका-एक नि आपनाए पारे काहेकि सउब जाइत केर आपन भासा संस्किरिति पेआरा हएला। आर आपन भासा टा कतिक’ कठिन रहले अहे टाइ कहबंए आर परेक भासा कतिक’ सरल आर मधुर रहलउ नी आपनाबएँ।

त’ डाॅ॰ अहिर जि केर कहल अनुजाइ हिंआक राजघराना आर अकर अधिनस्थ मानकी, मुण्डा, जमींदार आर दरबारी ल’ग केसे एतना आसानि ले आपन भासा छइड़कहन परेक भासा के आपनालएँ आर घरेक भासा बनालएँ ? इटा संचेक दरकार हेके। हिंआ एसन बुझातेहे कि एसन कन’ बात नी हए ह’इ। इटा कलप’ना मातर’ बुझातेहे। इकर/एकर अलाउआ डाॅ॰ अहिर जि केर आर’ बिचार के सुना-

वर्तमान में अहीरों की अपनी कोई भाषा नहीं है। लेकिन इतिहास, भाषा विज्ञान, साहित्य और संस्कृति सम्बन्धी किताब में पूर्ववर्ती एवं वर्तमान विद्वानों द्वारा जो वर्णन किया गया है उसके आधार पर अहीरों की भाषा सम्बन्धी जानकारी विगत 2000 ई॰ से पहले तक का प्राप्त होता है। इसके अनुसार पंचपरगनिया भाषा का मूल ‘आभीरी’ (अहीरी) मालूम पड़ता है।”

हिंआ डाॅ॰ अहिर गुरूजी कह’तंए कि अहिर जाति केर आपन भासा संबंधी जानकारि इतिहास, भासा बिगान, साहित आर संसकिरिति संबंधी किताब मेंहेन पहिलुक आर एखनुक बिदुआन गिला जेटा बाखान कइर आहएँ सेटाक आधारे 2000 इस्बि ले पहिल तक केर मिलेला। एबार हिंआ सवाल उठ’तेहे कि एतना पूरना भासा आर संस्किरिति जदि अहिर जाति केर रहे त’ एखन काहाँ लुकलक? काहांउ हले त’ बेबहारिक रूप मेंहेन देखातक? कम से कम हुआँ जाहाँ अहिर जाइत सउबले बेसि आहएँ। जेसन अइन’ जाइत केर एखन’ देखाएला जेसन मंुडा केर मुंडारी, हो केर हो, संथाल केर संथाली, उराँव केर कुँड़ूख, खडि़या केर खडि़या, मालतो केर मालतो, कुड़मि केर कुड़मालि एमाइन। बासतब मेंहेन जदि अहिर जाति केर भासा आहब’ करे त’ परमानिक रूपे ख’इज कहन बाहराएक दरकार आहे। किंतु पंचपरगनिया भासा जेटा अनेक भासाक मिलल आर साझा संस्किरितिक देन हेके सेटाके आभीरी/अहीरी संग जड़ना टा उचित नी बुझातेहे।


एकर अलाउआ डाॅ॰ अहीर जी, डाॅ॰ भगवत शरण उपाध्याय केर कथन के क’ट कइर कहन लिख’एँला – “मध्य प्रदेश की बेतवा और पार्वती नदियों के दोआब के गणराज्यों को “अहीर बाड़ा” में परिणत होने वाली जातियों में इनका भी नाम गिना गया है।” पुनः समुद्रगुप्त के आक्रमण के पश्चात् अहीर जाति बिहार और बंगाल में आई।


फेइर आर’ इमने केर कथन हेके देखा – “पाँचपरगना के जानकार बुजूर्ग अहीर व्यक्तियों द्वारा बतलाया जाता है कि हमारे पूर्वज किसी राजा के द्वारा लड़ाई में हार जाने की वजह से अपनी जान-माल की रक्षा हेतु इधर-उधर लुक-छिप एवं इधर-उधर भटकते हुए यहाँ पहुँचे। इतिहास में सबुत के तौर पर इनकी कहने लायक अंतिम लड़ाई समुद्र गुप्त के साथ चैथी शताब्दी के उतरार्द्ध में मिलता है। समुद्र गुप्त के साथ अहीरों की यह लड़ाई मध्य प्रदेश के ‘अहीरबाड़ा’ में हुआ था। सम्भवतः अहीर जातियों का कुछ दल रायगढ़, सुरगुजा, बिलासपुर, संबलपुर, मनोहरपुर, सिमडेगा के घने जंगलों के रास्ते लुक-छिप कर कालक्रम में पाँचपरगना पहुँचे। यह घटना हजार-डेड़ हजार वर्ष पहले की घटना है। अहीर जातियों का इस रास्ते से होकर पाँचपरगना में पहुँचना इसलिए सही लगता है क्योंकि खूँटी, कर्रा, बसिया, सिमडेगा, मनोहरपुर तरफ की नागपुरी भाषा के साथ यह भाषा यानी पंचपरगनिया काफी साम्य है।”

डाॅ.करम चंद्र अहीर जी के कथन का विवेचन

इ कथन गिलाक अइधन बिसलेसन करले पाता चलेला कि अहिर जाइत समुद्रगुप्त केर आकर’मन करल बादे एखनुक छतीसगढ़ बाटे ले एखनुकेर झारखंड केर पांच परगना समेत समुचा उतर बिहार मेंहेन आएकहन बसलएँ आर संगे-संगे बरत’मान झारखंड के पार कइर कहन बंगाल तक पहंच’लंए। एबार हिंआ, जदि एसन हए ह’इ त’ उतर बिहार जाहाँ अहिर जाइत सउबले बेसी आहंए आर बंगाल जाहाँ अहिर जाइत गिला हिंदे ले गेलंए हंुआउ अहीरी/आभीरी परभाबित पंचपरगनिया भासाएं काथा कहतंए, लेकिन एसन त’ नेखे।
दसरा बात डाॅ॰ अहिर जि, अहिर के रायगड़ सुरगुजा, बिलासपुर, संबलपुर, मनोहरपुर, सिमडेगा बाटे ले बिहार इआनि कि एखनुक झारखंड केर पाँच परगना तक पहुंचेक टा अहे तेहें सही मानएँला कि खुंटी, कर्रा, बसिया, सिमडेगा, मनोहरपुर बाटेक भासा टा पंचपरगनिया संग मेल खाएला। एबार हिंआ देखा, हिंदेक भासा टा पंचपरगनिया संग मेल खाबे करी।

जेसन कि हामरे पहिल’ कइ आहि कि समपुरन’ छ’टानागपुर आर एकर आसे पासे आदिबासी आर गएर आदिबासी बस’-बास करएँला। आर आदिबासीक आपन जातिगत भासा आहे। किंतु गएर आदिबासी मूल बासी केर आपन भासा नेखे। इमन ज’न भासाक बेब’हार करएँला। उटा छेतर’ बिसेस केर अनेक जातिगत आर बाहिर ले आगत भासाक मिलल रूप हेके/खिचड़ी रूप हेके। आर इ काथा टा डाॅ॰ अहीर गुरूजी उमन जन छेतर’ बाटे ले अहीर जाइत केर आगमन हए आहे कइ आहंए हुंदउ लागु हएला, अहे तेहें इ छेतरक भासा आर हामरेक पांच परगना छेतर’क भासा मेहेंन समानता देखे पाउआएला। आर एहे छेतर’ काहे, सम्पूरन’ झारखंड केर गएर आदिबासीक भासा संग हामरेक पंचपरगनिया भासटा समानता राखेला।

बल्कि हामरेक निजी राए हेके कि समपुर्न’ झारखंड मेंहेन जतनाइ गएर आदिबासी भासा आहे उगलाक नाम ‘‘पंचपरगनिया’’ राइख देले उचित ह’इ। इटा बएगानिक’ बुझाएला। जेसन पंचपरगनिया सब्द’ टाके खांड़ा करले हएला पंच+पर+गन+इया। इआनि पंच माने पांच ले बेसी, पर माने भिनु-भिनु, गन माने जाति समुदाए चाहे जन समुदाए आर इया भासा सूचक सबद’ हेके। इ भाभे पंचपरगनिया केर बिरहतम आर बएगानिक अरथ’ इ छेतर’ मेंहेन रह’इआ अनेक भिनु-भिनु जाति समुदाए केर जातिगत भासा आर बाहिर ले आल आगत भासा ले मिलल एकटा भासाक नाम हेके।

कहेक मतलब हेके कि छ’टानागपुर आर एकर आसे-पासे ज’तनाइ आरज’ भासा आहे आर इगलांए जन भासा गिला आपन निजेक चिन्हाप बनाए चुइक आहे उगलाएँ प्रत्यक्ष चाहे अप्रत्यक्ष रूपे छेतर’ बिसेस केर जातिगत भासा आर बाहिर ले आल अपभ्रंश ब’लि गिलाक लसिंद देखाबे करेला। जेसन-बिहारी भासाक भीतरे- मगही, मैथिली, भोजपुरी, पंचपरगनिया, नागपुरी, खोरठा एमाइन। एकर अलावा उडि़आ, बांगला, असमिया, छतीसगढ़ी, हिन्दी एमाइन। इ रकम इ भासा गिला आपस मेंहेन एके निआर (समानता) देखाबे क’रि।

इ रकम पंचपरगनिया केर अइन’ छेतर’ बिसेस केर भासा मेहेंन समानत मिलेक कार’नेइ उ छेतर’ बाटे ले अहीर जाइत केर आगमन हए आहे कहना टा उचित नी बुझातेहे।

सारांश

आसल मेंहेन क’नइ भी भासा कन’ एकटा भासा ले एका-एक जनम/निसरित नाइ हएला, बल्कि अनेक जातिगत भासा आर अइन’ बाहिर ले आल भासा आपस मेंहेन मिलेला आर धीरे-धीरे अपभ्रंश हएकहन एकटा नाउआ भासाक सरूप धारन करे लागेला। इटा एतना धीरे-धीरे हएला कि हामरेके पाताउ नाइ चलेला। एकर बनेक मेंहेन कए हजार साल लाइग जाएला। पहिल इ ब’लि, फेइर बिभासा आर तार बादे गाए भासाक रूप धारन करेला। पंचपगनिया भासाक संगउ एहे रकमे हए ह’इ।

इ रकम पंचपरगनिया भासा के किबल अहिर जाइत संग ज’ड़ना आर पंचपरगनिया के अहीरी भासा/आभीरी भासा कहना टा अनुचित बुझाएला। किंतु एतनाटा अब’इस’ कहे पारि कि अइन’ जातिगत भासाक रकमे अहिरि भासा केर’ परभाउ इआनि लसिंद पंचपरगनिया मेंहेन ह’ए आहे।


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